तृतीया का व्रत- अक्षय गृहस्थ का वरदान

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देवी गौरी ने धर्मराज को इस व्रत का उपदेश दिया था

देवी ने कहा जो स्त्री इस व्रत का पालन करती हे वो अपने पति के साथ उसी प्रकार आनंद करती हे जिस प्रकार में भगवान् शिव के साथ | जो कन्या उत्तम पति की इच्छा रखती हो उसे यह व्रत अवश्य ही करना चाहिए |

विधान- इस व्रत में लवण (नमक) वर्जित हे | जातक को चाहिए के वो देवी गौरी की प्रतिमा बनाए, और देवी का ही भक्तिपूर्वक पूजन करे | उन्हें विभिन्न प्रकार के नैवेध्य अर्पण करे | संध्या समय नमक रहित भोजन एक बार किया जा सकता हे | देवी की मूर्ति के समक्ष ही शयन करे | और सुबह उठकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा अर्पण करे | इस प्रकार व्रती को उत्तम पति प्राप्त होता हे तथा उसका अपने पति से कभी वियोग नहीं होता |

तृतीया व्रत से किसको लाभ हुआ

१. इन्द्राणी ने इस व्रत को पुत्र प्राप्ति के लिए किया और उन्हें जयन्त नामक पुत्र की प्राप्ति हुई |

२. अरुंधती ने उत्तम स्थान की प्राप्ति के लिए ये व्रत किया, और उन्हें महर्षि वशिष्ठ के साथ सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त हुआ | आज भी उन दोनों को आकाश के तारामंडल में देखा जा सकता हे |

३. चन्द्रमा की २७ पत्निया थी, उनमे से रोहिणी ने यह व्रत किया तो उसे प्रधान पत्नी का स्थान प्राप्त हुआ |

तृतीया व्रत कब करना चाहिए

१. माघ मास में- माघ मास में व्रत करके गुड और नमक का दान करे | शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने हेतु जल और मोदक का दान करे |

२. भाद्रपद- इस मास में गुड से बने मालपुओ का दान करे |

३. वैशाख- इस मास की तृतीया को किया हुआ दान अक्षय बना रहता हे, इसलिए इसे अक्षय तृतीया भी कहते हे | इस दीन जितना संभव हो उतना दान करना चाहिए | व्रती को चाहिए चन्दन मिश्रित जल और मोदक का भोग लगाना चाहिए | इस से ब्रह्मा सहित सब देवता प्रसन्न होते हे |

आशा रखते हे आप भी तृतीया के व्रत से लाभान्वित होंगे |

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