गणेशजी से वरदान प्राप्त करने का व्रत- चतुर्थी

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चतुर्थी का व्रत भारत के कई हिस्सों में बहोत ही श्रद्धा से किया जाता हे, विघ्नविनाशक गणेशजी इस व्रत से प्रसन्न होकर शीघ्र ही आशीर्वाद प्रदान करते हे | जानिए इस चतुर्थी के प्रकार और इन व्रत को करने की सम्पूर्ण विधी

भविष्य पुराण के अनुसार चतुर्थी के ३ प्रकार हे

१. शिवा- भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को शिवा कहते हे | इस दीन किये हुए सत्कर्मो का गणेशजी १०० गुना फल देते हे |

इस दीन क्या करना चाहिए- व्रत रखते हुए, गुड, नमक और घी का दान करना चाहिए एवं मालपुओ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए |

जो कन्या शिवा चतुर्थी का व्रत करती हे उसे उत्तम पति की प्राप्ति होती हे और विवाहित स्त्री यदि अपने सास ससुर को गुड से बने मालपुए खिलाके उनका आशीर्वाद प्राप्त करे तो उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती हे |

शांता – माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शांता चतुर्थी कहते हे | इस दीन किये हुए सत्कर्म को गणेशजी १००० गुना बढाके फल देते हे |

इस दीन क्या करना चाहिए- उपवास करे, गणेशजी का हवन करे और ब्राह्मणों को नमक, गुड, शाक और गुड से बने मालपुए दान में दे |

सुखा- किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और मंगलवार का संयोग हो उस चतुर्थी को सुखा कहते हे | यह चतुर्थी सारे सुख प्रदान करानेवाली होती हे | मंगल ग्रह का जन्म शिव-पार्वती के तेज से भूमि द्वारा हुआ था | भूमि के पुत्र होने के कारण मंगल को भौम भी कहते हे और सारे अंगो के रक्षक होने के कारण उन्हें अंगारक भी कहते हे | जो स्त्री-पुरुष सुखा चतुर्थी को गणेशजी के पूजन के बाद मंगल का पूजन रक्त चन्दन और रक्त पुष्प से करते हे उन्हें सौभाग्य, रूप और सम्पति का वरदान प्राप्त होता हे |

पूजा की सम्पूर्ण विधी

सबसे पहले हाथ में साफ़ मिटटी ले और इस मंत्र को पढ़े

इह त्वं वन्दिता पूर्वं कृष्णेनोध्दरता किल |

तस्मान्मे दह पाप्मानं यन्मया पूर्वसंचितम् ||

तत्पश्चात इस मिटटी को गंगाजल में मिलाकर सूर्यनारायण को दिखाकर अपने सर और दुसरे अंगो पर लगाये और जल में खड़े होकर इस मंत्र का पाठ करे

त्वमापो योनिः सर्वेषां दैत्यदानवधौकसाम |

स्वेदाण्डजोभिद्द्दां चैव रसानां पतये नमः ||

और ऐसी भावना करे के आपने सारे तीर्थो और नदियों में स्नान किया हे | इसके बाद इन मंत्रो सहित दूर्वा, शमी, पीपल और गाय का स्पर्श करे

दूर्वा

त्वं दूर्वेSमृतनमासि सर्वदेवैस्तु वन्दिता |

वन्दिता दह तत्सर्वं दुरितं यन्मया कृतम ||

शमी

पवित्राणां पवित्रा त्वं काश्यपी प्रथिता श्रुतो |

शमी शमय मे पापं नूनं वेत्सि धराधरान ||

पीपल वृक्ष

नेत्रस्पन्दादिजं दुःखं दु:स्वप्नम् दुर्विचिन्तनम् |

शक्तानां च समुध्योगमश्वस्थ त्वं क्षमस्व मे ||

गाय- गाय की प्रदक्षिणा करके इस मंत्र का उच्चारण करते हुए गाय का स्पर्श करे

सर्वदेवमयी देवी मुनिभिस्तु सुपूजिता |

तस्मात स्पृशामि वन्दे त्वाम् वन्दिता पापहा भव ||

जो गाय की प्रदक्षिणा करता हे उसे पृथ्वी की प्रदक्षिणा का फल प्राप्त होता हे |

अब पुनः हाथ पैर धो कर आसन पर बैठकर आचमन ले और खदिर की लकडियो से हवन करे जिसमे साकल्य में घी, दूध, जौ, तिल और विविध भक्ष्य पदार्थो से इन मंत्रो द्वारा आहुति दे

  1. ॐ शर्वाय स्वाहा
  2. ॐ शर्वपुत्राय स्वाहा
  3. ॐ क्षोण्युत्सङगभवाय स्वाहा
  4. ॐ कुजाय स्वाहा
  5. ॐ ललिताङ्गाय स्वाहा
  6. ॐ लोहिताङ्गाय स्वाहा

इन प्रत्येक मंत्र से १०८ अथवा सामर्थ्य अनुसार आहुति देनी चाहिए |

पश्चात, सोने, चांदी, चन्दन या देवदारु के लकड़ी से बनी मंगलकी मूर्ति को ताम्बे या चांदी के पात्र में स्थापित करे और घी, कुमकुम, लाल चन्दन, लाल पुष्प, नैवेध्य आदि से सामर्थ्य अनुसार पूजा करे | यदि ऐसा कर पाने का सामर्थ्य न हो तो ताम्बे का या मिटटी के या बांस के बर्तन में कुमकुम, केसर से मंगल की प्रतिमा बनाकर उसकी श्रद्धा के साथ पूजा करे | ब्राह्मणों की सहायता से वेदमंत्रो द्वारा उस मूर्ति की स्तुति करे और ब्राह्मणों को यथाशक्ति घी, गुड, चावल, घेहू, दूध और वह मूर्ति दान में दे |

इस प्रकार चार भौम चतुर्थी करने पर जातक चन्द्र के समान कान्तिमान और सूर्य के समान तेजमय और प्रभावशाली एवं वायु के समान balv

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